5

बस ऐसा ही हूँ मैं....

Posted by SUDHIR TOMAR on 3:34 PM in , ,
बचपन के रंग बहुत गहरे है मन पर,
याद्दाश्त भी है कि खराब नहीं होती,
उमर के साथ भी, बस यही दुखाता है मन,
नही भुल पाता वह सीख,
आज के स्वार्थ भरे जमाने मे भी,
कि सुख सबमे बाटों,
और दुख दुसरो का भी लेकर,
अपने दुख के साथ मन मे छिपा लो ।

देखता आया हूं सामने मुस्कुराते चेहरे,
और हाथो में छिपे खंजर भी,
उन्हें भी लौटाया है मैंने फूल अपनी हंसी का,
नहीं हो पाता क्रूर उनसे भी,
जिन्होने चाहा कुचलना मेरा वजूद बार बार,
नही रख सकता मन में कुछ भी,
फिर भी है बहुत कुछ जिसको सहता हूँ,
जो भी मिलता है उससे हंस कर मिलता हूँ ।

यह सिद्धान्तो के बखान नहीं है,
न है गुणों के खजाने ।
ये आदतें है मेरी,
कि इनसे मजबूर हूँ मैं,
बस ऐसा ही हूँ,
हां मैं बस ऐसा ही हूँ ।

5 Comments


may i know who has authored this poem,pls.


यह सिद्धान्तो के बखान नहीं है,
न है गुणों के खजाने ।
ये आदतें है मेरी,
कि इनसे मजबूर हूँ मैं,
बस ऐसा ही हूँ,
हां मैं बस ऐसा ही हूँ ।
आप जैसे भी हो , ऐसी ही कविताएं लिखो ..... बस।


plz hameshe aise hi rahna.....


achha likha hai bhai...mast hai

Copyright © 2009 Food for Thought All rights reserved. Theme by Laptop Geek. | Bloggerized by FalconHive.