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बस ऐसा ही हूँ मैं....
बचपन के रंग बहुत गहरे है मन पर,
याद्दाश्त भी है कि खराब नहीं होती,
उमर के साथ भी, बस यही दुखाता है मन,
नही भुल पाता वह सीख,
आज के स्वार्थ भरे जमाने मे भी,
कि सुख सबमे बाटों,
और दुख दुसरो का भी लेकर,
अपने दुख के साथ मन मे छिपा लो ।
देखता आया हूं सामने मुस्कुराते चेहरे,
और हाथो में छिपे खंजर भी,
उन्हें भी लौटाया है मैंने फूल अपनी हंसी का,
नहीं हो पाता क्रूर उनसे भी,
जिन्होने चाहा कुचलना मेरा वजूद बार बार,
नही रख सकता मन में कुछ भी,
फिर भी है बहुत कुछ जिसको सहता हूँ,
जो भी मिलता है उससे हंस कर मिलता हूँ ।
यह सिद्धान्तो के बखान नहीं है,
न है गुणों के खजाने ।
ये आदतें है मेरी,
कि इनसे मजबूर हूँ मैं,
बस ऐसा ही हूँ,
हां मैं बस ऐसा ही हूँ ।
याद्दाश्त भी है कि खराब नहीं होती,
उमर के साथ भी, बस यही दुखाता है मन,
नही भुल पाता वह सीख,
आज के स्वार्थ भरे जमाने मे भी,
कि सुख सबमे बाटों,
और दुख दुसरो का भी लेकर,
अपने दुख के साथ मन मे छिपा लो ।
देखता आया हूं सामने मुस्कुराते चेहरे,
और हाथो में छिपे खंजर भी,
उन्हें भी लौटाया है मैंने फूल अपनी हंसी का,
नहीं हो पाता क्रूर उनसे भी,
जिन्होने चाहा कुचलना मेरा वजूद बार बार,
नही रख सकता मन में कुछ भी,
फिर भी है बहुत कुछ जिसको सहता हूँ,
जो भी मिलता है उससे हंस कर मिलता हूँ ।
यह सिद्धान्तो के बखान नहीं है,
न है गुणों के खजाने ।
ये आदतें है मेरी,
कि इनसे मजबूर हूँ मैं,
बस ऐसा ही हूँ,
हां मैं बस ऐसा ही हूँ ।