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कभी कभी सोचता हूँ
Posted by SUDHIR TOMAR
on
1:26 PM
in
Friendship and Love,
Memories,
Poems,
Posts in Hindi,
Spiritual
कभी कभी सोचता हूँ
कैसा होता अगर समय थम जाता,
जब दिन अच्छे होते
खुशियाँ होती, अपने होते |
और निकल जाता फटाफट,
जब ग़म होता
तन्हाई होती
या फिर होता इंतजार किसी का |
कभी कभी सोचता हूँ,
कैसा होता अगर सूरज निकल जाता,
जब सर्द रात में
खुले आसमान के नीचे
कंपकपाती है जिंदगी |
और बिखर जाती चाँद की शीतल चांदनी,
जून की भरी दोपहर में
जब पसीने से तर बतर
बनती सड़क पर कोई तोड़ता है पत्थर
जमीन का सीना चीरता है किसान
और गाँव से दूर किसी स्कूल से लोटते हैं बच्चे |
कभी कभी सोचता हूँ,
कैसा होता अगर तुम न मिलते,
शायद अलग होती जिंदगी |
पर तुम मिले
और छोड़ गए अपनी अच्छाई
वो अच्छाई, जो दबा देती है बुराई को बहुत नीचे
और कभी कभी अच्छाई को भी |
वो अच्छाई, जो बदल देती है जिंदगी
छोड़ जाती है अपनी परछाई
और एक सुखद एहसास
पर हमेशा नहीं |
अच्छा हुआ, मैं अच्छा नहीं हुआ |
कैसा होता अगर समय थम जाता,
जब दिन अच्छे होते
खुशियाँ होती, अपने होते |
और निकल जाता फटाफट,
जब ग़म होता
तन्हाई होती
या फिर होता इंतजार किसी का |
कभी कभी सोचता हूँ,
कैसा होता अगर सूरज निकल जाता,
जब सर्द रात में
खुले आसमान के नीचे
कंपकपाती है जिंदगी |
और बिखर जाती चाँद की शीतल चांदनी,
जून की भरी दोपहर में
जब पसीने से तर बतर
बनती सड़क पर कोई तोड़ता है पत्थर
जमीन का सीना चीरता है किसान
और गाँव से दूर किसी स्कूल से लोटते हैं बच्चे |
कभी कभी सोचता हूँ,
कैसा होता अगर तुम न मिलते,
शायद अलग होती जिंदगी |
पर तुम मिले
और छोड़ गए अपनी अच्छाई
वो अच्छाई, जो दबा देती है बुराई को बहुत नीचे
और कभी कभी अच्छाई को भी |
वो अच्छाई, जो बदल देती है जिंदगी
छोड़ जाती है अपनी परछाई
और एक सुखद एहसास
पर हमेशा नहीं |
अच्छा हुआ, मैं अच्छा नहीं हुआ |