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कभी कभी सोचता हूँ

Posted by SUDHIR TOMAR on 1:26 PM in , , , ,
कभी कभी सोचता हूँ
कैसा होता अगर समय थम जाता,
जब दिन अच्छे होते
खुशियाँ होती, अपने होते |

और निकल जाता फटाफट,
जब ग़म होता
तन्हाई होती
या फिर होता इंतजार किसी का |

कभी कभी सोचता हूँ,
कैसा होता अगर सूरज निकल जाता,
जब सर्द रात में
खुले आसमान के नीचे
कंपकपाती है जिंदगी |

और बिखर जाती चाँद की शीतल चांदनी,
जून की भरी दोपहर में
जब पसीने से तर बतर
बनती सड़क पर कोई तोड़ता है पत्थर
जमीन का सीना चीरता है किसान
और गाँव से दूर किसी स्कूल से लोटते हैं बच्चे |

कभी कभी सोचता हूँ,
कैसा होता अगर तुम न मिलते,
शायद अलग होती जिंदगी |

पर तुम मिले
और छोड़ गए अपनी अच्छाई
वो अच्छाई, जो दबा देती है बुराई को बहुत नीचे
और कभी कभी अच्छाई को भी |

वो अच्छाई, जो बदल देती है जिंदगी
छोड़ जाती है अपनी परछाई
और एक सुखद एहसास
पर हमेशा नहीं |

अच्छा हुआ, मैं अच्छा नहीं हुआ |




5 Comments


भाई कविता तो अच्छी है , परन्तु लास्ट में एंडिंग ठीक नहीं है | ऐसा लग रहा है की अधूरी सी है ये कविता |


nice poem, but end seems to be incomplete.


very nice sudhir, waiting for ur next post...


@Dharmu
Ending done

@Ashu
Ending kar di hai bhai ... ab shayad theek lg rahi ho


very complicated ending dude! mast hai boss.

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