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तुम सुधि बन-बनकर बार-बार

Posted by SUDHIR TOMAR on 3:13 PM in , ,
तुम सुधि बन-बनकर बार-बार
क्यों कर जाती हो प्यार मुझे?
फिर विस्मृति बन तन्मयता का
दे जाती हो उपहार मुझे ।

मैं करके पीड़ा को विलीन
पीड़ा में स्वयं विलीन हुआ
अब असह बन गया देवि,
तुम्हारी अनुकम्पा का भार मुझे ।

माना वह केवल सपना था,
पर कितना सुन्दर सपना था
जब मैं अपना था, और सुमुखि
तुम अपनी थीं, जग अपना था ।

जिसको समझा था प्यार, वही
अधिकार बना पागलपन का
अब मिटा रहा प्रतिपल,
तिल-तिल, मेरा निर्मित संसार मुझे ।

- भगवतीचरण वर्मा

2 Comments


Dekh do baten hoti hain, ya to paristhiti ko badal do ya phir paristhiti ke anusar apne aap ko badal do.
I'm the one who always choose to be a fighter,
So ye rone-dhone wala kavita-Chalbo nai


To theek hai agli baar jung ka aagaj hoga ... abhi isi se kaam chala le ...

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