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तुम सोच रहे हो बस

Posted by SUDHIR TOMAR on 3:12 PM in , ,
तुम सोच रहे हो बस, बादल की उड़ानों तक,
मेरी तो निगाहें हैं सूरज के ठिकानों तक।

टूटे हुए ख़्वाबों की एक लम्बी कहानी है,
शीशे की हवेली से पत्थर के मकानों तक।

दिल आम नहीं करता अहसास की ख़ुशबू को,
बेकार ही लाए हम चाहत को ज़ुबानों तक।

लोबान का सौंधापन, चंदन की महक में है,
मंदिर का तरन्नुम है, मस्जिद की अज़ानों तक।

इक ऎसी अदालत है, जो रुह परखती है,
महदूद नहीं रहती वो सिर्फ़ बयानों तक।

हर वक़्त फ़िज़ाओं में, महसूस करोगे तुम,
मैं प्यार की ख़ुशबू हूँ, महकूंगा ज़मानों तक।

- आलोक श्रीवास्तव

3 Comments


बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल , बरबस गुनगुनाने को जी चाहता है | बधाई के पात्र हैं आप |


अत्ति सुन्दर पोस्ट है सुधीर जी, मेरे ह्रदय मैं आप के लिए असीम जगह बन गयी है .


धन्यवाद् शारदा जी |
आशुतोष जी, धन्यवाद् | ह्रदय में जगह बन जाना गलत नहीं है, पर ध्यान रहे कहीं दोस्ताना न हो जाये |

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